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प्रत्याहार संज्ञा : संज्ञा प्रकरण

  SANSKRITJAGAT     16/02/2021 | 06:28 PM   1

१. आदिरन्त्येन सहेता । ल.कौ. ४ । अष्टा. १.१.७१ ।।

वृत्ति : अन्त्येनेता सहित आदिर्मध्यगानां स्वस्य च संज्ञा स्यात् । यथाऽणिति अइउवर्णानां संज्ञा । एवमच् हल् अलित्यादयः ।

अर्थ : अन्तिम इत्–संज्ञक वर्ण के साथ आदिवाला वर्ण अपनी और बीच के सभी वर्णों की प्रत्याहार संज्ञा करता है । जैसे – अण् कहने पर अ‚ इ तथा वर्णों का ग्रहण होता है ।

प्रत्याहार : प्रत्याहार का अर्थ है संक्षेप में कथन । प्रत्याहार चौदह माहेश्वर सूत्रों से बनाये जाते हैं । प्रत्याहार बनाने के लिये निम्न बातें समझना आवश्यक है :

प्रत्याहार बनाना :

  1. प्रत्याहार दो वर्णों से मिलकर बना होता है । यथा – अच्‚ हल्‚ अल्‚ झश्‚ जश्‚ यय् आदि
  2. इसमें पहला वर्ण पूर्ण (स्वर अथवा स्वर युक्त व्यञ्जन) होता है जबकि अन्तिम वर्ण हल् (बिना स्वर के व्यञ्जन) होता है । यथा – अच्‚ हल्
  3. प्रत्याहार का आदि वर्ण सूत्रों के अन्तिम वर्णों के अतिरिक्त कोई भी वर्ण हो सकता है । यथा – अइउण् सूत्र से अ‚ इ को आदि में रखकर अण्‚ इण्उण् तीन प्रत्याहार बन सकते हैं । किन्तु 'ण्' को आदि में नहीं रखा जा सकता ।
  4. प्रत्याहार के अन्तिम (हल् युक्त) वर्ण माहेश्वर सूत्रों के अन्तिम वर्ण होते हैं । यथा – अच् में 'च्' वर्ण ऐऔच् (चौथे सूत्र) का अन्तिम वर्ण है । इसी तरह यर् में र् तेरहवें सूत्र (शषसर्) का अन्तिम वर्ण है ।
  5. इन हल् वर्णों की संख्या १४ है । इन्हीं चौदहों हल् वर्णों में से कोई एक वर्ण प्रत्याहार का अन्तिम वर्ण हो सकता है ।
  6. प्रत्याहार का अन्तिम वर्ण जिस सूत्र से होता है‚ आदि वर्ण उस सूत्र अथवा उसके पहले के सूत्रों से ही हो सकता है । बाद के सूत्रों से नहीं । उदाहरण के लिये अगर प्रत्याहार का अन्तिम वर्ण 'च्' रखा जाए जो कि चौथे सूत्र का अन्तिम वर्ण है‚ तो आदि वर्ण चौथे सूत्र या उसके पूर्व के सूत्रों से लिया जा सकेगा । जैसे – अच्‚ इच्‚ एच्‚ ऐच् आदि ।
  7. माहेश्वर सूत्रों से यूँ तो सैकड़ों प्रत्याहार बन सकते हैं किन्तु आवश्यकता के आधार पर प्रायः ४४–४६ प्रत्याहार माने जाते हैं । किन्तु सर्वाधिक प्रयोग के आधार पर सर्वमान्य संख्या ४२ है ।

प्रत्याहार पहचानना :
       प्रत्याहार को पहचानने अथवा प्रत्याहार से वर्णों को ग्रहण करने के लिये निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनीं चाहिए ।

  1. हल् युक्त (सूत्रों के अन्तिम) वर्णों को इत् कहते हैं । इनका ग्रहण केवल प्रत्याहार बनाने के लिये होता है ।
  2. प्रत्याहार से वर्णों का ग्रहण करते समय सभी इत् वर्णों का लोप हो जाता है ।
  3. प्रत्याहार पहचानने के लिये सबसे पहले प्रत्याहार के अन्तिम (हल् युक्त) वर्ण को माहेश्वर सूत्रों के अन्तिम वर्णों में खोजें । उदाहरण के लिये 'यर्' प्रत्याहार में 'र्' को खोजने पर यह तेरहवें सूत्र (शषसर्) के अन्त में मिलता है । इसे चिह्नित कर लें ।
  4. अब आदि वर्ण को सूत्रों के अन्तिम वर्णों को छोड़कर खोजें । जैसे कि 'यर्' में 'य' पाँचवें सूत्र (हवरट्) में दूसरे स्थान पर प्राप्त होता है । इसे भी चिह्नित कर लें । ध्यान रहे कि य वर्ण हल् युक्त अवस्था में बारहवें सूत्र (कपय्) के अन्त में भी प्राप्त होता है । किन्तु यह सूत्रान्त और हलन्त होने के कारण ग्रहण नहीं होगा ।
  5. अब आदि वर्ण के चिह्नित सूत्र से लेकर अन्त्य वर्ण के चिह्नित सूत्र तक लिख डालें । यथा – (यर् प्रत्याहार में) यवरट् लण् ञमङणनम् झभञ् घढधष् जबगडदश् खफछठथचटतव् कपय् शषसर् । यहाँ पाँचवें सूत्र से 'ह' को नहीं लिया गया क्यूँकि 'यर्' प्रत्याहार का प्रारम्भ 'य' से है और 'ह' वर्ण 'य' के पहले पड़ता है ।
  6. इनमें सभी हल् युक्त वर्णों को काट दें । यथा – (यर् प्रत्याहार में) यवर ल ञमङणन झभ घढध जबगडद खफछठथचटत कप शषस
  7. यही आपके प्रत्याहार के अन्तर्गत आये हुए वर्ण हैं । यर् = य व र ल ञ म ङ ण न झ भ घ ढ ध ज ब ग ड द ख फ छ ठ थ च ट त क प श ष स ।
आशा है इन नियमों को पढ़कर आप माहेश्वर सूत्रों से स्वतः ही प्रत्याहार बना व पहचान सकेंगे । यदि कोई समस्या या शंका हो तो नीचे टिप्पणीमंजूषा में पूँछ सकते हैं । आपके प्रश्नों व शंकाओं का यथाशीघ्र व यथासम्भव समाधान किया जाएगा ।

क्रमशः....


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सुझाव व टिप्‍पणियाँ

  Kirti

16/02/2021 को 11:46 PM

Sir bht hi acha explain kiya h....thnx



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