व्याख्या : उक्त सारिणी में वर्णों को तीन वर्गों में वर्गीकृत किया गया है । इनमें से प्रथम तालिका में केवल वे स्वर हैं जिनके ह्रस्व भेद होते हैं । शीर्षक पंक्ति के नीचे की पंक्तियाँ इन वर्णों के ह्रस्व‚ उदात्तादि भेदों को दर्शाती हैं अर्थात् अ‚ इ‚ उ‚ ऋ व लृ स्वर ह्रस्व‚ उदात्त‚ अनुदात्त‚ स्वरित‚ अनुनासिक व निरनुनासिक (अननुनासिक) हो सकते हैं । इनमें से ह्रस्वत्व नित्य है बाकी वैकल्पिक अर्थात् इनकी ह्रस्व अवस्था के अन्तर्गत ये या तो उदात्त होंगे या अनुदात्त या कि स्वरित‚ इसके अतिरिक्त ये या तो अनुनासिक होंगे या अननुनासिक । इस तरह से इन वर्णों में से प्रत्येक के ह्रस्व भेद के अन्तर्गत उदात्तानुनासिकादि छः–छः भेद होते हैं ।
अ इ उ ऋ लृ
ह्रस्व उदात्त अनुनासिक
ह्रस्व उदात्त अननुनासिक
ह्रस्व अनुदात्त अनुनासिक
ह्रस्व अनुदात्त अननुनासिक
ह्रस्व स्वरित अनुनासिक
ह्रस्व स्वरित अननुनासिक
द्वितीय तालिका में केवल वे वर्ण दिये हैं जिनके दीर्घ भेद होते हैं । इनमें लृ वर्ण सम्मिलित नहीं है क्यूँकि इसका दीर्घभेद नहीं होता । इस तरह लृ वर्ण के ये छः भेद कट जाते हैं । बाकी बातें प्रथम तालिका की भाँति ही हैं । इस तरह इन वर्णों में से प्रत्येक के उदात्तानुनासिकादि छः–छः भेद होते हैं ।
आ ई ऊ ऋ ए ओ ऐ औ
दीर्घ उदात्त अनुनासिक
दीर्घ उदात्त अननुनासिक
दीर्घ अनुदात्त अनुनासिक
दीर्घ अनुदात्त अननुनासिक
दीर्घ स्वरित अनुनासिक
दीर्घ स्वरित अननुनासिक
तृतीय तालिका में सभी स्वर दिये गये हैं । क्यूँकि सभी स्वरों के प्लुत भेद होते हैं । प्लुत अवस्था में इन सभी की भी उदात्तानुनासिकादि संज्ञाएँ होती हैं । इस तरह से सभी प्लुत स्वरों के भी छः–छः भेद और हो जाते हैं ।
अ इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ
प्लुत उदात्त अनुनासिक
प्लुत उदात्त अननुनासिक
प्लुत अनुदात्त अनुनासिक
प्लुत अनुदात्त अननुनासिक
प्लुत स्वरित अनुनासिक
प्लुत स्वरित अननुनासिक
जिन वर्णों को तीनों ही तालिकाओं में स्थान मिला है उनके ६x३=१८ भेद होते हैं जबकि जिनको केवल दो तालिकाओं में स्थान मिला है उनके छः भेद कम हो जाते हैं । इस तरह उनके केवल १२ भेद होते हैं । अ‚ इ‚ उ व ऋ स्वरों के ह्रस्व‚ दीर्घ व प्लुत तीनों ही भेद होने के कारण प्रत्येक भेद के छः प्रकारों को लेकर १८–१८ भेद होते हैं । शेष स्वरों के १२–१२ भेद होते हैं ।