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लोप संज्ञा : संज्ञा प्रकरण
SANSKRITJAGAT 14/02/2021 | 08:34 PM
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१. अदर्शनं लोपः ।। ल.कौ. २ । अष्टा. १.१.६० ।।
वृत्ति : प्रसक्तस्यादर्शनं लोपसंज्ञं स्यात् ।
अर्थ : किसी भी प्राप्त वर्ण आदि के न दिखाई पड़ने या न सुने जाने को लोप कहते हैं ।
२. तस्य लोपः ।। ल.कौ. ३ । अष्टा. १.३.९ ।।
वृत्ति : तस्येतो लोपः स्यात् । णादयोऽणाद्यर्थाः ।
अर्थ : जिन वर्णों की इत् संज्ञा होती है उनका लोप हो जाता है ।
टिप्पणी : अइउण् आदि सूत्रों में ण् आदि की इत्संज्ञा होने से ये लुप्त हो जाते हैं । ये ण् आदि अण् आदि प्रत्याहार बनाने के साधन हैं । जिस प्रत्यय आदि में से इत् संज्ञा होकर जिस वर्ण का लोप हो जाता है‚ उसके आधार पर ही उस प्रत्यय को णित्‚ कित् आदि कहा जाता है । जैसे – अण् प्रत्यय में से ण् इत् हो कर लुप्त होता है अतः अण् एक णित् प्रत्यय है‚ क प्रत्यय का क् लोप होता है अतः वह कित् है । इसी प्रकार आगे भी समझना चाहिए ।
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