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सरमा पणि संवादसूक्त : ऋग्वेद १०|१०८

  SANSKRITJAGAT     24/01/2021 | 11:10 AM   0

ऋषि : सरमा देवशुनी | देवता : प्रणय | छन्द : त्रिष्टुप्

किमिच्छन्ती सरमा प्रेदमानड्दूरे ह्यध्वा जगुरिः पराचैः
कास्मेहिति: का परितक्म्यासीत्कथं रसाया अतर: पयांसि ॥ १ ।।

इन्द्रस्य दूतीरिषिता चरामि मह इच्छन्ती पणयो निधीन्व:
अतिष्कदो भियसा तन्न आवत्तथा रसाया अतरं पयांसि ॥ २ ।।

कीदृङ्ङिन्द्र: सरमे का दृशीका यस्येदं दूतीरसरः पराकात्
आ च गच्छान्मित्रमेना दधामाथा गवां गोपतिर्नो भवाति ॥ ३ ।।

नाहं तं वेद दभ्यं दभत्स यस्येदं दूतीरसरं पराकात्
न तं गूहन्ति स्रवतो गभीरा हता इन्द्रेण पणयः शयध्वे ॥ ४ ।।

इमा गाव: सरमे या ऐच्छ: परि दिवो अन्तान्त्सुभगे पतन्ती
कस्त एना अव सृजादयुध्व्युतास्माकमायुधा सन्ति तिग्मा ॥ ५ ।।

असेन्या व: पणयो वचांस्यनिषव्यास्तन्व: सन्तु पापीः
अधृष्टो व एतवा अस्तु पन्था बृहस्पतिर्व उभया न मृळात् ॥ ६ ।।

अयं निधिः सरमे अद्रिबुध्नो गोभिरश्वेभिर्वसुभिर्न्यृष्टः
रक्षन्ति तं पणयो ये सुगोपा रेकु पदमलकमा जगन्थ ॥ ७ ।।

एह गमन्नृषय: सोमशिता अयास्यो अङ्गिरसो नवग्वाः
त एतमूर्वं वि भजन्त गोनामथैतद्वच: पणयो वमन्नित् ॥ ८ ।।

एवा च त्वं सरम आजगन्थ प्रबाधिता सहसा दैव्येन
स्वसारं त्वा कृणवै मा पुनर्गा अप ते गवां सुभगे भजाम ॥ ९ ।।

नाहं वेद भ्रातृत्वं नो स्वसृत्वमिन्द्रो विदुरङ्गिरसश्च घोराः
गोकामा मे अच्छदयन्यदायमपात इत पणयो वरीयः ॥ १० ।।

दूरमित पणयो वरीय उद्गावो यन्तु मिनतीॠतेन
बृहस्पतिर्या अविन्दन्निगूळ्हा: सोमो ग्रावाण ऋषयश्च विप्रा: ॥ ११ ।।


ऋग्वेद :
    मण्डल क्रम – दसवाँ मण्डल । एक सौ आठवाँ सूक्त । (नौवाँ अनुवाक)
    अष्टक क्रम – आठवें अष्टक के छठें अध्याय का पाँचवाँ‚ छठाँ वर्ग


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