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वेदों की अपौरुषेयता : पक्ष व विपक्ष

  SANSKRITJAGAT     07/02/2021 | 10:22 PM   0

भारतीय दृष्टि में वेद अपौरुषेय हैं किन्तु पूर्वमीमांसा और बाद में सायणाचार्य की भाष्य भूमिकाओं में इस विषय में जो विशद शास्त्रार्थ प्रस्तुत है उससे प्रतीत होता है कि प्राचीन काल से ही वेदों के अपौरुषेयत्व पर चर्चा होती रही है । हालाँकि सिद्धान्त पक्ष की प्रस्तुति में विरोधियों के तर्कों की सम्भावना कर लेना भारतीय मनीषियों की शैली भी रही है । किन्तु वर्तमान में वेदों की अपौरुषेयता पर पक्ष व विपक्ष दोनों ही उपस्थित हैं । इस सन्दर्भ में दोनों पक्षों के प्रमुख तर्कों पर एक दृष्टि डाली जा सकती है ।

पौरुषेय वादियों के तर्क :
१. (वेदांश्चैके सन्निकर्ष पुरुषाख्या – मीमांसासूत्र १.१.२७) वेदकर्ताओं के नाम प्राप्त होते हैं । जैसे वाल्मीकि रचित रामायण वाल्मीकीय कहलाती है उसी प्रकार वेदों की शाखाओं के साथ काठक आदि नाम प्राप्त होते हैं इसका अभिप्राय यह है कि इसे कठ नाम वाले किसी व्यक्ति ने रचा है ।
२. (अनित्यदर्शनाच्च – मीमांसासूत्र १.१.२८) वेद में जननमरणशील अतएव अनित्य व्यक्तियों के नाम मिलते हैं यथा 'बबरः प्रावाहणिरकामयत्' तैत्ति. सं. ७.१.१०.२ । यहाँ प्रवहण के पुत्र बबर का उल्लेख है इससे स्पष्ट है कि वेद को बबर नामक व्यक्ति ने रचा है ।
३. वेद में कहीं वनस्पतियों और कहीं सर्पों द्वारा सत्रानुष्ठान का उल्लेख है जो सम्भव नहीं है । इससे प्रतीत होता है कि वेदों को किसी उन्मत्त व्यक्ति ने लिखा ।

अपौरुषेयवादियों का खण्डन :
१. वेदमन्त्रों के साथ मिलने वाले नाम रचयिताओं के नहीं अपितु उनके हैं जिन्होंने सर्वप्रथम इनका उपदेश किया ।
२. बबर आदि नाम अनित्य प्राणियों के नहीं हैं अपितु यहाँ प्रवहण शब्द से प्रवहणशील स्वभाव वाली वायु का निर्देश है – 'परं तु श्रुतिसामान्यमात्रम्' मीमांसासूत्र १.१.३१
३. जहाँ तक वनस्पतियों और सर्पों के द्वारा यज्ञानुष्ठान की बात है तो ये अर्थवाद मात्र है । यह यज्ञ को गौरव देने के लिये है ।
४. पौरुषेयवादी यदि यह कहें कि बादरायण ने अपने 'शस्त्रयोनित्वात्' सूत्र में ब्रह्म को वेद का कारण बतलाया है तो इससे भी वेद की अपौरुषेयता पर आंच नहीं आती । इससे यह कहाँ सिद्ध होता है कि वेद किसी मनुष्य ने रचे हैं ।
निष्कर्ष यह है कि भारतीय परम्परा और भारतीय मनीषि वेद को सर्वथा नित्य और अपौरुषेय मानते हैं – 'अनादिनिधना नित्या वाक्...' ।

सन्दर्भ ग्रन्थ :
वैदिक साहित्य और संस्कृति का स्वरूप – प्रो. ओमप्रकाश पाण्डेय

इति....

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