व्युत्पत्ति – वि (उपसर्ग)+ आ (उपसर्ग)+ कृ (धातु)+ ल्युट् (प्रत्यय)
अर्थ– व्याक्रियन्ते विविच्यन्ते प्रकृतिप्रत्ययादयो यत्र तद् व्याकरणम् । जिसमें शब्दों के प्रकृति (मूल शब्द अथवा धातु) और प्रत्ययों आदि का विवेचन किया जाता है‚ उसे व्याकरण कहते हैं ।
उद्देश्य– साधु या शिष्ट शब्दों का ज्ञान कराना‚ असाधु शब्दों का निराकरण‚ भाषा के स्वरूप पर नियन्त्रण रखना और प्रकृति–प्रत्यय के बोध के द्वारा शब्दों के वास्तविक रूप का स्पष्टीकरण ।
पतञ्जलि ने व्याकरण के मुख्य पाँच उद्देश्य बताए हैं – रक्षोहागमलघ्वसन्देहाः प्रयोजनम् (महाभाष्य)
१. रक्षा – वेदों की रक्षा के लिए ।
२. ऊह (तर्क) – यथास्थान विभक्तिपरिवर्तन‚ वाच्यपरिवर्तन आदि के लिए ।
३. आगम – ʺब्राह्मणेन निष्कारणो धर्मः षडङ्गो वेदोऽध्येयो ज्ञेयश्च । प्रधानं च षडङ्गेषु व्याकरणम्ʺ । (महाभाष्य) । ब्राह्मण को निष्काम भाव से वेदांगों सहित वेद का अध्ययन करना चाहिए‚ इस आदेश की पूर्ति के लिए । ।
४. लघु – संक्षिप्त ढंग से शब्दज्ञान के लिए ।
५. असन्देह – शब्द और अर्थ के असन्दिग्ध रूप को जानने के लिए तथा सन्देह के निवारण के लिए ।
महत्व–
यद्यपि बहु नाधीषे तथापि पठ पुत्र व्याकरणम्
स्वजनः श्वजनो मा भूत् सकलं शकलं सकृच्छकृत् ।।
उक्त श्लोक में कोई व्यक्ति अपने पुत्र से कह रहा है कि भले ही तुम अधिक कुछ न पढो किन्तु फिर भी व्याकरण अवश्य पढो जिससे कि तुम्हे स्वजन (बन्धु–बान्धव) और श्वजन (कुत्ता)‚ सकल (सम्पूर्ण) और शकल (खण्ड) तथा सकृत् (एक बार) और शकृत् (मल) में भेद करने की समझ हो । यह श्लोक व्याकरण के महत्व का सम्पूर्ण दिग्दर्शन कराता है ।
परम्परा–
परम्परा ब्रह्मा जी को व्याकरण का आदि आचार्य स्वीकार करती है । ऋक्तन्त्र में आचार्य शाकटायन का कथन है कि ʺब्रह्मा ने देवगुरु बृहस्पति को व्याकरण का ज्ञान दिया । बृहस्पति ने इन्द्र को‚ इन्द्र ने भरद्वाज को‚ भरद्वाज ने ऋषियों को और ऋषियों के द्वारा ये विद्या ब्राह्मणों को प्राप्त हुईʺ । ब्रह्मा के प्रवचन को ‘शास्त्र‘ अथवा ‘शासन‘ नाम दिया गया । इसके परवर्ती व्याख्यानों को अनुशासन कहा गया ।
अष्टाध्यायी में उल्लिखित वैयाकरणों के नाम – अष्टाध्यायी में महर्षि पाणिनि ने १० आचार्यों का स्मरण व उनके मत का उद्धरण किया है । ये क्रमशः १. आपिशलि‚ २. काश्यप‚ ३. गार्ग्य‚ ४. गालव‚ ५. चाक्रवर्मण‚ ६.भारद्वाज‚ ७. शाकटायन‚ ८. शाकल्य‚ ९. सेनक व १०. स्फोटायन हैं । इनके अतिरिक्त आचार्य पाणिनि के पूर्ववर्ती प्रायः ८५ वैयाकरणों का नाम प्राप्त होता है ।