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वैदिक आरण्यक ग्रन्थ

  SANSKRITJAGAT     02/01/2021 | 11:18 PM   0

संहिता‚ ब्राह्मण‚ आरण्यक तथा उपनिषद् ये वेद के चार विभाग हैं । इनमें से आरण्यक ग्रन्थ वे गूढग्रन्थ थे जिनका अध्ययन एकान्तस्थान पर ही सम्भव था । अतः इनकी अध्ययन परम्परा गावों व नगरों से बाहर‚ निर्जन स्थान में जंगलों आदि में विकसित हुई जिसके कारण ही सम्भवतः इनका नाम आरण्यक पड़ा । सायणाचार्य के अनुसार जिन ग्रन्थों का मनन‚ चिन्तन या अध्ययन गांव व नगर के कोलाहलपूर्ण वातावरण में सम्भव नहीं था वे ही आरण्यक ग्रन्थ कहे गये । इन्हीं ग्रन्थों में वेदों के विभिन्न रहस्यों का उद्घाटन तथा प्राणविद्‍या का दार्शनिक विवेचन हुआ । प्रायः ये ब्राह्मणग्रन्थों के ही पूरकभाग हैं और अधिकांश उपनिषद् इन्हीं के विभाग हैं ।

महाभारत के आदिपर्व में आरण्यकों के विषय में कहा गया है –

नवनीतं यथा दध्‍नो, मलयाच्‍चन्‍दनं यथा ।
आरण्‍यकं च वेदेभ्‍य:, औषधिभ्‍यो मृतं यथा ।।

प्रमुख आरण्‍यकग्रन्‍थ निम्‍नोक्‍त हैं –

ऋग्‍वेदसंहिता - ऐतरेय, शांखायन
यजुर्वेदसंहिता - वृहदारण्‍यक (शुक्‍लयजुर्वेद के दोनों विभागों पर), तैत्तिरीय, मैत्रायणी (कृष्‍णयजुर्वेद पर) ।
सामवेदसंहिता - तवलकार (जैमिनीयोपनिषद्), छान्‍दोग्‍य ।
अथर्ववेदसंहिता - अथर्ववेदे पर सम्प्रति एक भी आरण्यक उपलब्ध नहीं होता ।




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