मण्डलक्रम: -
मण्डलक्रम का अवान्तर विभाजन अनुवाकों व सूक्तों में है । सम्पूर्ण ऋग्वेद में कुल १० मण्डल हैं । मण्डलों की इस संख्या के कारण ही ऋग्वेद का एक अन्य नाम 'दाशतयी' है । प्रत्येक मण्डल कुछ अनुवाकों में बंटा है । प्रत्येक अनुवाक में कुछ सूक्त हैं । प्रत्येक सूक्त में अनुपाततः 10 ऋचाएँ हैं ।
ऋचामशीति: पादश्च पारणं संप्रकीर्तितम् ।।
आधुनिक गणना के अनुसार ऋग्वेद में ऋचाओं की सम्पूर्ण संख्या १०४१७ ही प्राप्त होती है । इसमें बालखिल्य सूक्त भी सम्मिलित हैं । प्रक्षेपों के निवारण के लिये अनुक्रमणीकारों ने ऋक्संहिता के सम्पूर्ण शब्दों की भी गणना की है । इसके अनुसार ऋचाओं में कुल १५३८२६ शब्द हैं ।
शतानि चाष्टौ दशकेद्वयं च पदानि षट् चेति हि चर्चितानि ।।
ऋग्वेदस्य गोत्र/वंशमण्डल - द्वितीयमण्डल से
सप्तममण्डलपर्यन्त मण्डलों को गोत्र अथवा वंशमण्डल कहते हैं । क्यूँकि इन मण्डलों में आये हुए मन्त्र विशेष ऋषि व उनके वंशज अथवा शिष्यपरम्परा द्वारा दृष्ट हैं । द्वितीय मण्डल के द्रष्टा कवि गृत्समद व उनके वंशज‚ तृतीय के विश्वामित्र‚ चतुर्थ के वामदेव‚ पंचम के अत्रि‚ षष्ठ के भारद्वाज तथा सप्तम के ऋषि वशिष्ठ व उनके वंशज हैं ।
मण्डल | ऋषि | सूक्तसंख्या |
1 | मधुच्छन्दा, दीर्घतमा, अंगिरा | 191 |
2 | गृत्समद व उनके वंशज | 43 |
3 | विश्वामित्र‚ उनके पुत्र व शिष्य | 62 |
4 | वामदेव व उनके वंशज | 58 |
5 | अत्रि व उनके शिष्य | 78 |
6 | भरद्वाज व उनके शिष्य | 75 |
7 | वशिष्ठ व उनके वंशज | 104 |
8 | कण्व व उनके वंशज | 92+11(बालखिल्यम्) |
9 | पवमान और अंगिरा | 114 |
10 | महासूक्तीय व क्षुद्रसूक्तीय ऋषि | 191 |
योग: - | 1017+11=1028 |
शतपथब्राह्मण में
उल्लेख मिलता है कि प्रजापति ने ऋचाओं की गणना के लिये उन्हें पृथक् किया । जिन ऋचाओं को प्रजापति ने रचा उनकी अक्षरसंख्या बारह हजार बृहती (12000x36=432000) थी -
'स ऋचो व्यौहत् । द्वादश बृहतीसहस्राण्येतावत्यो हर्चो या: प्रजापति सृष्टा:' ।
'चत्वारिंशतसहस्राणि द्वात्रिंशच्चाक्षरसहस्राणि' ।