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ऋग्वेद का अवान्तर विभाजन - मण्डलक्रम ।

  SANSKRITJAGAT     15/01/2021 | 02:32 PM   0

मण्‍डलक्रम: -

मण्‍डलक्रम का अवान्तर विभाजन अनुवाकों व सूक्तों में है । सम्पूर्ण ऋग्वेद में कुल १० मण्डल हैं । मण्डलों की इस संख्या के कारण ही ऋग्वेद का एक अन्य नाम 'दाशतयी' है । प्रत्येक मण्डल कुछ अनुवाकों में बंटा है । प्रत्येक अनुवाक में कुछ सूक्त हैं । प्रत्येक सूक्त में अनुपाततः 10 ऋचाएँ हैं ।

ऋक्‍संहिता में सम्‍पूर्ण 85 अनुवाक तथा 1017 सूक्‍त हैं । मण्डलक्रम विभाजन का ऐतिहासिक आधार होने के कारण विद्वानों के मध्य यह विभाजन विशेष लोकप्रिय रहा है । शौनककृत अनुवाकानुक्रमणी के अनुसार ऋचाओं की सम्पूर्ण संख्या १०५८०-१/४ है ।

ऋचां दश सहस्राणि ऋचां पंचशतानि च ।

ऋचामशीति: पादश्‍च पारणं संप्रकीर्तितम् ।।

आधुनिक गणना के अनुसार ऋग्वेद में ऋचाओं की सम्पूर्ण संख्या १०४१७ ही प्राप्त होती है । इसमें बालखिल्य सूक्त भी सम्मिलित हैं । प्रक्षेपों के निवारण के लिये अनुक्रमणीकारों ने ऋक्संहिता के सम्पूर्ण शब्दों की भी गणना की है । इसके अनुसार ऋचाओं में कुल १५३८२६ शब्द हैं ।

शाकल्‍यदृष्‍टे: पदलक्षमेकं सार्धं च वेदे त्रिसहर्सयुक्‍तम् ।

शतानि चाष्‍टौ दशकेद्वयं च पदानि षट् चेति हि चर्चितानि ।।

ऋग्‍वेदस्‍य गोत्र/वंशमण्‍डल - द्वितीयमण्‍डल से सप्‍तममण्‍डलपर्यन्‍त मण्डलों को गोत्र अथवा वंशमण्‍डल कहते हैं । क्यूँकि इन मण्डलों में आये हुए मन्त्र विशेष ऋषि व उनके वंशज अथवा शिष्यपरम्परा द्वारा दृष्ट हैं । द्वितीय मण्डल के द्रष्टा कवि गृत्समद व उनके वंशज‚ तृतीय के विश्वामित्र‚ चतुर्थ के वामदेव‚ पंचम के अत्रि‚ षष्ठ के भारद्वाज तथा सप्तम के ऋषि वशिष्ठ व उनके वंशज हैं

अन्‍यानि मण्‍डलानि - प्रथम तथा दशम मण्‍डल की सूक्‍तसंख्‍या 111 है । प्रथम मण्डल के ऋषियों को कात्यायन नें 'शतर्चिन:' (शतऋचा: कृता: यै:) कहा है । इस मण्डल के प्रथम ऋषि विश्वामित्र के पुत्र मधुच्छन्दा हैं । इनके नाम से सौ से अधिक ऋचाएँ होने के कारण छत्रिन्याय से सभी ऋषि शतर्चिन कहे गये । नवम मण्डल के सभी सूक्त सोम की स्तुति में प्रयुक्त हैं । सामवेद में प्रायः इसी मण्डल से मन्त्र स्वीकृत हैं । इस मण्डल को पवमानमण्डल भी कहते हैं । षड्गुरुशिष्‍य के अनुसारं दशम मण्‍डल में नासदीयसूक्‍त से (10-129) पहले के सूक्त महासूक्त तथा बाद के सूक्त क्षुद्रसूक्त कहे जाते हैं । अतः इनके ऋषियों का भी यही नाम (महर्षि/क्षुद्र ऋषि) कहा जाता है । दसवें मण्डल की एक विशेषता यह भी है कि इसके ऋषि व देवता एक ही हैं ।

निम्‍न तालिका में विभिन्‍नमण्‍डलाें के ऋषि और सूक्‍तसंख्‍या प्रदर्शित है ।

मण्‍डल ऋषि सूक्‍तसंख्‍या
1 मधुच्‍छन्‍दा, दीर्घतमा, अंगिरा
191
2 गृत्‍समद व उनके वंशज
43
3 विश्‍वामित्र‚ उनके पुत्र व शिष्‍य 62
4 वामदेव  व उनके वंशज
58
5 अत्रि व उनके शिष्‍य
78
6 भरद्वाज व उनके शिष्‍य 75
7 वशिष्‍ठ व उनके वंशज 104
8 कण्‍व व उनके वंशज
92+11(बालखिल्‍यम्)
9 पवमान और अंगिरा
114
10 महासूक्‍तीय व क्षुद्रसूक्‍तीय ऋषि 191
     
योग: -
1017+11=1028

 

शतपथब्राह्मण में उल्‍लेख मिलता है कि प्रजापति ने ऋचाओं की गणना के लिये उन्हें पृथक् किया । जिन ऋचाओं को प्रजापति ने रचा उनकी अक्षरसंख्या बारह हजार बृहती (12000x36=432000) थी -

'स ऋचो व्‍यौहत् ।  द्वादश बृहतीसहस्राण्‍येतावत्‍यो हर्चो या: प्रजापति सृष्‍टा:' ।

'चत्‍वारिंशतसहस्राणि द्वात्रिंशच्‍चाक्षरसहस्राणि' ।

यह निर्धारण प्राचीनकाल का है । आज उपलब्ध शाखा में मन्त्राें की कुल संख्या १०४१७ ही है ।

इति

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