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षड् वेदाङ्ग - वेदपुरुष के अंग ।
SANSKRITJAGAT 11/01/2021 | 11:08 AM
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वेद पुरुष का अङ्ग होने के कारण विशिष्ट प्रकार की ग्रन्थपरम्परा को वेदाङ्ग कहते हैं । वेद अङ्गी हैं और ये उनके अङ्ग । इन वेदाङ्गों की संख्या ६ है ।
- शिक्षा
- कल्प
- निरुक्त
- व्याकरण
- ज्योतिष्
- छन्द
वेदांगों का मुख्य उद्देश्य वेदों के अध्ययन को सरल बनाना व वेदों को भली भाँति समझने में सहायता प्रदान करना है । इन ग्रन्थों की सहायता के बिना वेदों में गति प्रायः असम्भव ही है । इनमें से शिक्षा वेदों के स्वरादि का ज्ञान कराती है‚ कल्पसूत्र वे सूत्र हैं जो वेदों के अध्ययन की आचारसंहिता निर्धारित करते हैं‚ निरुक्त वेदों का शब्दकोश है‚ ज्योतिष् वेदों के अध्ययन व वैदिक कर्मकाण्डों के सम्पादन के लिये अनिवार्य ग्रहों‚ नक्षत्रादिकों की अनुकूलता व शुभाशुभ दिनों‚ मुहूर्तों आदि का विचार करते हैं‚ छन्द के ज्ञान के विना मन्त्रों के अध्ययन में प्रवृत्त हो सकना सम्भव नहीं‚ इनका ज्ञान इसी वेदाङ्ग द्वारा साध्य है और अन्त में व्याकरण जिसके विना शब्दों के प्रकृति प्रत्ययादि का ज्ञान हो सकना ही असम्भव है ।
इनकी प्रधानता के क्रम को निर्धारित करते हुए इन्हें वेद भगवान् के तत्तदङ्गों की संज्ञा दी गई है । इनमें शिक्षा नाक है‚ कल्प हाँथ हैं‚ निरुक्त कान हैं‚ व्याकरण मुख है‚ ज्योतिष् आँखें हैं तो छन्द पैर हैं –
छन्दा: पादौ तु वेदस्य, हस्तौ कल्पो थ पठ्यते ।
ज्योतिषामयनं चक्षुर्निरुक्तं श्रोत्रमुच्यते ।।
शिक्षा घ्राणं तु वेदस्य मुखं व्याकरणं स्मृतम्
तस्मात्सांगमधीत्यैव ब्रह्मलोके महीयते ।।
अर्थात् छन्द वेद भगवान् के पैर हैं‚ कल्प हाँथ हैं‚ ज्योतिष् नेत्र हैं‚ निरुक्त कान हैं‚ शिक्षा नासिका है तथा मुख व्याकरण है । इस तरह वेदों का अंगों (वेदांगों) सहित अध्ययन करने से ब्रह्मलोक किंवा मोक्ष की प्राप्ति होती है ।
इति
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