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ऋग्वेद का आन्तरिक विभाजन : अष्टकक्रम ।

  SANSKRITJAGAT     14/01/2021 | 12:49 AM   0

ऋग्वेद से अभिप्राय उस वेद से है जिसमें ऋचाओं की प्रधानता होती है । ऋचा का तात्पर्य पद्‍यात्मक मन्त्रों से है - 'तेषामृग्‍यत्रार्थवशेन पाद-व्‍यवस्‍था' । इस प्रकार से ऋग्वेदसंहिता ऋचाओं की संकलित निधि है । इसका आन्तरिक विभाजन दो प्रकार का है - 'अष्‍टक क्रम' और 'मण्‍डल क्रम'


अष्‍टकक्रम: - अष्‍टकविभाजन पाठ की सुविधा के लिये किया गया था । यह कृत्रिम विभाजन है । अष्टकक्रम में अध्यायों व वर्गों का अवान्तर विभाजन है । सम्पूर्ण ऋग्वेद में कुल आठ अष्टक हैं । सभी अष्टकों का परिमाण प्रायः समान ही है । प्रत्येक अष्टक में आठ-आठ अध्याय हैं । प्रत्येक अध्याय में कुछ वर्ग हैं । प्रत्येक वर्ग में पाँच मन्त्रों का अनुपात है । अध्यायों की कुल संख्या चौंसठ (६४) है तथा वर्ग दो हजार छः (२००६) हैं ।


निम्‍न तालिका में वर्गाें तथा ऋचाओं का सम्‍बन्‍ध देखा जा सकता है ।

ऋचाएँ    
वर्गसंख्‍या    
सम्पूर्ण संख्‍या   
1 1 1
2 2 4
3 97 291
4 174 696
5 1207 6035
6 346 2076
7 119 833
8 59 472
9 1 9
     
योग 2006 10417


इस तालिका में ऋचाओं वाली पंक्ति संख्या को दर्शाती है अर्थात् इतनी ऋचाओं की संख्या से युक्त कुल इतने वर्ग हैं यह आशय है । उदाहरण के लिये एक ऋचा वाले वर्गों की संख्या मात्र एक है । दो ऋचाओं वाले वर्ग दो हैं । तीन ऋचाओं वाले वर्गों की कुल संख्या ९७ है ।

क्रमश...

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