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वेद का अर्थ व स्वरूप

  SANSKRITJAGAT     10/01/2021 | 07:34 PM   0

       बह्वृच्प्रातिशाख्‍य में वेद का अर्थ - विद्यन्‍ते धर्मादय: पुरुषार्थ: यैस्‍ते वेदा: अर्थात् जिससे धर्म‚ अर्थ‚ काम‚ मोक्ष‚ इन चारों पुरुषार्थों के बारे में ज्ञान प्राप्त करते हैं वे ही वेद हैं, दिया गया है ।  सायणाचार्य अपनी ऋग्‍वेदभाष्‍यभूमिका में वेद का अर्थ - अपौरुषेयवाक्यं वेद: अर्थात् जो स्वयं प्रकट हुए हैं किंवा जिनका निर्माण मनुष्य ने नहीं किया है वे वेद हैं‚ लिखा है ।  वहीं उन्होंने पुनः कहा है कि इष्‍ट्प्राप्‍त्‍यनिष्‍टपरिहारयोरलौकिकं साधनं यो वेदयति स वेद अर्थात् वांछित वस्तु की प्राप्ति और अवांछित के निराकरण का उपाय बताने वाला ग्रन्थ ही वेद है । इसके प्रमाण में उन्होंने निम्न श्लोक प्रस्तुत किया है –
प्रत्‍यक्षेणानुमित्‍या वा यस्‍तूपायो न विद्यते 
एवं विदन्ति वेदेन तस्‍मात् वेदस्‍य वेदता ।।

वेद पद से संहिता, ब्राह्मण, आरण्‍यक और उपनिषद् इन चारों ही प्रकार के ग्रन्थों का बोध होता है ।

संहिता - छन्‍दोबद्धमन्‍त्रयुक्‍त वेदविभाग ।
ब्राह्मण - वेद के व्‍याख्‍याभाग, गद्यात्‍मक और यज्ञ आदि के वर्णन से युक्त ।
आरण्‍यक - इसमें मन्त्र और व्याख्या दोनों ही प्राप्त होते हैं‚ गाथारूप, वानप्रस्‍थीय ग्रन्‍थ  ।
उपनिषद् - संहिताओं के अन्तर्गत ब्रह्मज्ञा‍न आदि विषयों  का वर्णनात्मक संकलन, वेद का अन्तिम विभाग ।

इति


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