वेदों के आविर्भाव किंवा रचना के विषय में विभिन्न प्रकार के मत हैं ।
इनमें से बहुत सारे मत विदेशी विद्वानों के द्वारा स्थापित तथा कई अन्य मत
भारतीय विद्वानों के भी हैं । हालांकि अबतक न तो वेदों की रचना से
सम्बन्धित ठीक समयाकलन ही हो सका है न ही इसके समय के विषय में विद्वानों
में एकमतता ही हो पाई है । क्यूँकि विदेशी विद्वानों की दृष्टि में
मानवसृष्टि की ही रचना का काल कुछ हजार वर्ष पूर्व है अतः वेदों के
आविर्भाव के विषय में भी उनकी मान्यता कुछ हजार वर्षों की परिधि तक सीमित
रही है । इनमें से तो कुछ पाश्चात्य विद्वानों के तर्क इतने मूर्खतापूर्ण
और हास्यास्पद हैं कि उनको रेखांकित करने में भी लज्जा का अनुभव होता है ।
फिलहाल हम यहाँ पर वेद के आविर्भाव के सम्बन्ध में भारतीय विद्वानों के ही मतों की चर्चा करेंगे ।
भारतीय
विद्वानों में से अधिक विद्वानों का मत वेदों को अपौरुषेय मानने के पक्ष
में है । उनके अनुसार वेदों की रचना किसी मनुष्य ने नहीं की है । मन्त्रों
के साथ जिनके नाम आये हैं वे उनके द्रष्टा ऋषि हैं न कि स्रष्टा अथवा
रचयिता । सायणाचार्य के अनुसार ये ऋषि अतीन्द्रिय अर्थों के जानने वाले थे –
अतीन्द्रियार्थद्रष्टारो हि ऋषय: । यास्क का भी कथन महत्वपूर्ण है – साक्षात्कृतधर्माणं ऋषयो बभूवु: । तेवरेभ्योसाक्षात्कृतधर्मेभ्य उपदेशेन मन्त्रान् सम्प्रादु: (निरुक्तम् 1.2) ।
ग्रन्थरूप
में वेद मानवसमूह को कैसे प्राप्त हुए इस विषय में प्रायः ४० मत प्रचलित
हैं । इनका वर्गीकरण तीन वर्गों में किया जा सकता है ।
1- वेद स्वतः उत्पन्न अतः अपौरुषेय हैं । पूर्वमीमांसाकार जैमिनि‚ उनके
भाष्यकार शबरस्वामी और वार्तिककार कुमारिलभट्ट इसके विशेष पक्षधर हैं । इन्होंने इसका विशद विवेचन भी किया है ।
2-
न्याय-वैशेषिक दर्शनों में ईश्वर ही वेद का रचयिता स्वीकार किया गया है ।
उनके अनुसार प्रत्येक ग्रन्थ का कोई रचयिता होता है अतः वेद का भी कोई
रचयिता होगा । वेद के विषयों का अनुशीलन करने से वह मानवज्ञान व अनुभवों से
परे लगता है अतः इस तरह के विशिष्ट ज्ञान से युक्त ग्रन्थ का कर्ता तो
ईश्वर ही हो सकता है - बुद्धिपूर्वा वाक्यकृतिर्वेदे ।
3 -
तीसरा मत वेदमन्त्रों को ऋषियों द्वारा ही रचित मानता है । इस मत के
अनुसार ऋषियों ने ही वेदमन्त्रों की रचना की हालाँकि निश्चय ही वेदज्ञान की
प्राप्ति इन ऋषियों को ईश्वर की ही कृपा से हुई । सम्प्रति अधिक विद्वान्
इसी मत को स्वीकार करते हैं । इस मत के अनुसार वेदप्राप्ति की परम्परा
निम्नवत है –
ईश्वर ने ब्रह्मा को वेदों का ज्ञान प्रदान किया‚
ब्रह्मा से वशिष्ठ ने‚ वशिष्ठ से शक्ति ने‚ शक्ति से पराशर ने तथा पराशर से
यह ज्ञान व्यास ने प्राप्त किया । व्यास ने ही अपने पैल‚ सुमन्तु‚ जैमिनि
आदि शिष्यों के माध्यम से इसका विस्तार किया ।
इति...