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ब्राह्मणग्रन्थों से सम्बन्धित कुछ पारिभाषिक शब्द
SANSKRITJAGAT 05/01/2021 | 10:45 PM
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विधि -
किस यज्ञ का आयोजन कब, कहाँ, कैसे व किस तरह करना चाहिए तथा इसके अधिकारी कौन हैं इन विषयों का व्याख्यान ही विधि है ।
विनियोग -
किस मन्त्र का किस अर्थ में तथा किस प्रयोजन की सिद्धि में प्रयोग किया जाए इसका उपदेश ही विनियोग है । इनका सर्वप्रथम प्रयोग ब्राह्मणों में ही प्राप्त है ।
हेतु -
कारण का कथन ही हेतु है । अर्थात् किस कार्य की सिद्धि के लिये, अथवा कौन सा यज्ञ, क्यों करना चाहिये वह कारण ही हेतु है ।
अर्थवाद -
यागोपयोगी वस्तुओं की प्रशंसा तथा यागनिषिद्ध कार्यों की निन्दा ही अर्थवाद है ।
निरुक्ति -
शब्दों का निर्वचन निरुक्ति है । शब्दों का मूलार्थ कथन ही निर्वचन है । निरुक्त ग्रन्थों का बीज ब्राह्मणग्रन्थों में ही निहित हैं ।
आख्यान -
विधि का स्वरूप हृदयङ्गम करने तथा विषय की रोचकता बढाने के लिये आख्यान की योजना की जाती है । ये दो प्रकार के हैं -
१- दीर्घकाय (पुरुरवा-उर्वशी, सरमा-पणि, यम-यमी आदि)
२- लघुकाय
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