
उपनिषदों को वैदिक साहित्य के चतुर्थ विभाग के रूप में जाना जाता है । ये ज्ञानकाण्ड की परम्परा के ग्रन्थ हैं । यदि ब्राह्मण ग्रन्थ वेदवृक्ष की शाखाएँ तथा आरण्यक उनके पुष्प हैं तो निश्चय ही उपनिषद् ग्रन्थ उन पुष्पों की सुगन्धि कहे जा सकते हैं । वेद के अन्तिम भाग होने के कारण ही इन्हें वेदान्त नाम से भी जाना जाता है । भगवान्
शंकराचार्य ने इन्हें
ब्रह्मविद्या कहा है ।
उपनिषद् शब्द की उत्पत्ति उप, तथा नि उपसर्ग पूर्वक सदलृ धातु से हुई है । यहाँ सदलृ धातु का प्रयोग 1-विशरण 2-गति तथा 3-अवसादन इन तीन अर्थों में किया गया है । इस तरह उपनिषद् का तात्पर्य अविद्या का विशरण‚ ब्रह्मविद्या की प्राप्ति तथा सांसारिक दुःखों का शिथिलीकरण है ।
मुख्य उपनिषद् ग्रन्थ निम्नोक्त हैं –
ऋग्वेदसंहिता - ऐतरेयोपनिषद्, कौषीतकि उपनिषद्, बाष्कलोपनिषद् ।
यजुर्वेदसंहिता - ईशावास्योपनिषद्, वृहदारण्यकोपनिषद्, कठोपनिषद्, मैत्रायण्युपनिषद्, तैत्तिरीयोपनिषद्, श्वेताश्वतरोपनिषद् ।
सामवेदसंहिता - छान्दोग्योपनिषद्, केनोपनिषद् ।
अथर्ववेदसंहिता - प्रश्नोपनिषद्, मुण्डकोपनिषद्, माण्डूक्योपनिषद् ।