वेद सम्पूर्ण विश्व किंवा मानव जाति के प्रथम ग्रन्थ हैं यह
बात सम्प्रति सर्वमान्य रूप से स्थापित है । वेद शब्द की उत्पत्ति विद्
धातु से हुई है जिसका तात्पर्य ज्ञान‚ लाभ‚ सत्ता तथा विचारणा से है । इस
तरह प्रायः विद्वानों ने वेद शब्द की व्युत्पत्ति इन सभी अर्थों को लेकर की
है । वेद की व्युत्पत्ति विषयक चर्चा यथास्थान की जाएगी ।
वेद नाम के अतिरिक्त इस ग्रन्थ के श्रुति‚ त्रयी‚ छन्दस्‚ निगम‚ आम्नाय‚
समाम्नाय व स्वाध्याय नाम भी प्राप्त होते हैं । इन नामों के औचित्य पर
यहाँ चर्चा की जा रही है ।
श्रुति
- गुरुमुख ये प्राप्त होने के कारण वेद का एक नाम श्रुति भी है । यह नाम
वेदराशि के श्रवणपरम्परा से प्राप्त होने के कारण रूढ हुआ लगता है ।
त्रयी - रचनात्रैविध्य के कारण (ऋचा, यजुष्, सामन्) वेद का एक अन्य नाम त्रयी भी है ।
छन्दस्
- छन्द अर्थात् बन्धन - छन्दान्सि छादनात् । छन्द मनोभावों को
ढक लेते हैं । निघण्टु में छन्द का कान्ति अर्थ भी प्राप्त होता है । पूजा
के भी अर्थ में छन्द शब्द का प्रयोग होता है । आगे छन्द शब्द का
विशिष्टार्थ साममन्त्रों के प्रति हुआ ।
निगम - यह शब्द वेद की की गम्भीर अर्थवत्ता पर बल देता है । गूढार्थ होने के कारण वेद का यह नाम प्रसिद्ध है ।
आम्नाय/समाम्नाय – म्ना धातु का प्रयोग अभ्यास के अर्थ में होता है । ये दोनों ही शब्द वेद के दैनिक अभ्यास के कारण वेद के पर्याय हैं ।
स्वाध्याय: - वेद का प्रतिदिन सम्यक रूप से अध्ययन होने के कारण वेद का नाम स्वाध्याय भी है ।
इति...